Tuesday, 2 December 2014

ये जिंदगी भी बड़ी अजीब होती है 
जाने किसकी दहलीज होती है !!
अगर देती है आँखों में अश्क 
तो अधरों पे मुस्कुराहट भी लौटा जाती है। 

कभी रिश्तों को बुलाती है पास 
फिर उनसे दूर भी ले जाती है 
अगर देती है जीने का मक़सद 
तो मरने की वजह भी छोड़ जाती है 

देती है हर वक़्त एक इशारा 
जाने क्या बयां करती है !!
संग आती है ,जाती संग है 
पर मक़सद इसका एक राज ही रहे जाती है। 

ये जिंदगी भी बड़ी अजीब होती है।  है ना ?

Thursday, 27 November 2014

हर बार मुझ से मेरे अंतरमन ने
बहुत ही विनय से, तन्मयता से पूछा है-
यह अभिलाषा कौन? कौन है बताना ज़रा !’

हर बार मुझ से मेरे दोस्तों ने
व्यंग्य से, कटाक्ष से, कुटिल संकेत से पूछा है-
यह अभिलाषा कौन है बताना ज़रा !’

हर बार मुझ से मेरे अपनों ने
कठोरता से, अप्रसन्नता से, रोष से पूछा है-
यह अभिलाषा कौन है बताना ज़रा !’

मैं तो आज तक कुछ नहीं बता पाया
तुम मेरे सचमुच कौन हो क्या परिचय हैं तुम्हारा !
फिर एक आवाज सी आती है और नयन छलक जाती है अंतर्मन से एक धूमिल सी तस्वीर नज़र आती है अरे ये तो मेरी 'आशा' है
यही मेरी अभिलाषा की परिभाषा है!